Wednesday, 26 December 2018

क्या कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी की मर्जी के बिना दूसरी शादी कर सकता है या नहीं 2018

क्या कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी की मर्जी के बिना दूसरी शादी कर सकता है या नहीं 2018
मुस्लिम पुरुष अपनी मर्जी से पत्नी को बिना बताए क्या दूसरी शादी कर सकता है यह एक बहुत बड़ा सवाल है

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मुस्लिम पुरुष की पूरी जिम्मेवारी है कि वह अपनी बीवी के सभी हुकूक अदा करें मुस्लिम पुरुष को और जाति के पुरुषों के मुकाबले बीवी के हक अदा करने की हुकुम अल्लाह ताला ने दिया है जो बात मुस्लिम पुरुष को समझनी होगी और अपनी बीवी के हक अदा करने होंगे दूसरी शादी करना पहली बीवी को मारना पीटना शरीयत इस बात की इजाजत नहीं देती मुस्लिम पुरुष को अपनी हद जानी होगी और अपनी बीवी की इजाजत के बिना उसके सभी हद पूरी किए बिना शादी नहीं करनी चाहिए बीवी को तो बिल्कुल भी मारना पीटना नहीं चाहिए उसको प्यार से रखना और उसके सारे आफ राजा पूरे करना यह मुस्लिम पुरुष की जिम्मेवारी है।


इस्लाम में एक मर्द सात शादियां कर सकता है

इस्लाम के मुताबिक एक मर्द सात शादियां कर सकता है बशर्ते वह पहली बीवी की इजाजत लेगा और अपनी पहली बीवियों के हर जरूरी खर्च को पूरा करेगा और उनको अपनी अपनी जगह अपने अपने सारे हक अदा करेगा सात शादियां करने का मकसद इस्लाम में इसलिए है जिससे ज्यादा औलादे हूं और इस्लाम ज्यादा से ज्यादा पहले आज के नौजवान इसे गलत राह पर ले रहे हैं शादियां करना जरूरी नहीं अगर तुम पहली बीवी के Haq पूरे नहीं कर पा रहे।


एक लड़की  अपने मां बाप भाई बहन रिश्तेदारों और सभी प्यार करने वालों को छोड़कर अपने पति के घर आती है उसको अपने शहर का ही सहारा है अगर शौहर उसे मारेगा पिटेगा तो वह बेचारी कहां जाएगी यह उसका हक है कि उसे ससुराल में हर जरूरत का सामान प्यार सम्मान इज्जत दी जाए वह कोई नौकरानी नहीं उसे पूरी इज्जत का हक है कुछ लोग बीवी को बिल्कुल भी इज्जत नहीं देते और उसके साथ मारपीट दंगे फसाद करते हैं कुछ लोग तो उससे डिमांड भी करते हैं के मायके से कार लेकर आओ या पैसा लेकर आओ जो सरासर गलत है इस्लाम में इसकी बिल्कुल मना दी है ऐसे लोग अल्लाह को बिल्कुल पसंद नहीं जो अपनी बीवियों पर जुल्म करें अल्लाह ताला ने इरशाद फरमाया के तुम्हारी बीवी तुम्हारा लिबास है और तुम अपनी बीवी का लिबास हो
और बीवी के बेहद हक बताए हैं सबसे पहला हक हक के मेहर है और दूसरा हक के घर में उसकी इज्जत है और बाकी जो वह अपने घर में जिस तरीके से रहती थी उसे वैसे ही सारा सामान मुहैया करा कर देना शहर की जिम्मेवारी है उसके हर सुख दुख में शोहर को उसका साथ देना चाहिए उसकी इजाजत के बगैर दूसरी शादी नहीं करना चाहिए आगे पढ़िए एक मुसलमान ने अपनी बीवी को बिना बताए दूसरी शादी की और मुकदमा कोर्ट में चल रहा है
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(तफसीर)
एक मुस्लिम  पुरुष की निजी जिंदगी की कहानी

नई दिल्ली: क्या मुस्लिम समाज का कोई पुरुष अपनी पहली पत्नी की मर्जी के बगैर दूसरी शादी कर सकता है? क्या भारतीय दंड संहिता के मुताबिक यह दो पत्नियां रखने का अपराध नहीं माना जाएगा?

छत्तीसगढ़ के एक पुरुष के खिलाफ 2 पत्नियां रखने का एक मामला कोर्ट के सामने आया था। इस शिकायत को खारिज करने के लिए एक जवाबी अर्जी दायर की गई। अब गुजरात हाईकोर्ट इस मामले पर विचार कर रही है कि क्या आईपीसी (इंडियन पेनल कोड) को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनों से ऊपर मान्यता दी जाए या नहीं।

मर्चेंट की पत्नी साजिदा बानू वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अपने ससुराल से वापस मायके लौट गई थीं। मर्चेंट ने वर्ष 2003 में साजिदा की मर्जी के बगैर दूसरी शादी कर ली। एक साल बाद साजिदा ने मर्चेंट के खिलाफ 2 पत्नियां रखने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई।


गुजरात की भावनगर पुलिस ने मर्चेंट को 2 पत्नियां रखने और पत्नी के साथ मारपीट करने एवं दहेज मांगने के लिए संबंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में 2 पत्नियां रखने के अपराध में सजा का प्रावधान है। कानून के मुताबिक ऐसा करना अपराध की श्रेणी में आता है।

मर्चेंट ने वर्ष 2010 में हाईकोर्ट का रुख किया । उसका दावा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी करना अपराध नहीं है क्योंकि इस्लामिक कानूनों के मुताबिक एक पुरुष को 4 शादियां करने का अधिकार है।
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उसकी इस दलील के खिलाफ साजिदा बानू के वकील ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक पुरुष को अपनी सभी पत्नियों के साथ समान न्याय का बर्ताव करना चाहिए, लेकिन मर्चेंट ने अपनी पहली पत्नी की सहमति के बिना ही दूसरी शादी कर ली। इस तरह उसने ना सिफ मुस्लिम पर्सनल लॉ को तोड़ा, बल्कि अपनी पत्नी के साथ गलत बर्ताव भी किया। इन्हीं आरोपों को आधार बनाकर साजिया बानू के वकील ने अदालत में कहा कि मर्चेंट को आईपीसी के तहत अपराध की सजा मिलनी चाहिए।

हाईकोर्ट ने इस मामले में कोर्ट की मदद के लिए एक न्यायमित्र (अमाइकस क्यूरे) की नियुक्ति की। उसने कुरान शरीफ के सूरा-एक-निकाह की आयतें पढ़कर अदालत से कहा कि एक से अधिक शादियों को इस्लाम में मंजूरी है। न्यायमित्र ने कोर्ट से यही आयत पढ़कर यह भी कहा कि एक से ज्यादा पत्नियां रखने को हालांकि मंजूरी है, लेकिन सभी पत्नियों के साथ बराबरी का बर्ताव और सबके साथ समान न्याय की भी बात कही गई है।

दोनों पक्षों द्वारा अपनी-अपनी दलीलें कोर्ट के सामने पेश करने और मजहबी कानून की चर्चा खत्म हो जाने के बाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। गौर हो कि 1955 में हिंदू मैरेज ऐक्ट के लागू होने तक हिंदुओं को भी एक से अधिक शादियां करने की अनुमति थी।


मुसलमान मर्द को हमेशा अपनी बीवी की इज्जत करनी चाहिए हमारे प्यारे आका सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की शादी आलीशान है कि अपनी बीवियों को इज्जत और प्यार दिया करो यह बेचारी अपने घरों और रिश्तेदारों और प्यारों को छोड़कर सिर्फ तुम्हारे लिए आ जाती हैं और तुम्हारे प्यार की मौत आज है उन्हें तुमसे प्यार मोहब्बत चाहिए अपनी बीवियों के साथ हुस्ने सुलूक से पेश आया करो।

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( इस्लामिक नीलोफर आजहरी)

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