अब्दुल-कादिर जीलानी
अब्दुल-कादिर जीलानी
पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सहाब से अपने वंश को इंगित करने के लिए गिलानी को सय्यद का खिताब दिया गया है।.मुहियुद्दीन नाम उन्हें "धर्म के पुनरुत्थान" के रूप में वर्णित करता है। गिलान (अरबी अल-जिलानी) उनके जन्म स्थान, गिलान को संदर्भित करता है। हालांकि, हज़रत गिलानी ने बगदादी का भी उल्लेख किया। bagdaad में उनके निवास और दफन का जिक्र करते हुए। उन्हें अल-हस्नी वल-हुसैन भी कहा जाता है, जो हज़रत अली के पुत्र हज़रत हसन इब्न अली और हज़रत हुसैन इब्न अली दोनों नामों से वंशवादी वंश का दावा करता है।
19 December को ग्यारहवीं शरीफ का त्योहार है. यह त्योहार पीरों के पीर शेख सैय्यद अबू मोहम्मद अब्दुल कादिर जीलनी रहमतुल्लाह अलैह से निस्बत रखता है. जिन्हें गौस ए आजम के नाम से जाना जाता है. गौस ए आजम के करामात बचपन से ही दुनिया वालों ने देखा है. जब आप छोटे ही थे तो इल्म हासिल करने के लिए मां ने 40 दीनार (रुपये) देकर काफिला के साथ बगदाद रवाना किया. रास्ते में 60 डाकुओं ने काफिला को रोक कर लूटपाट मचाया. डाकुओं ने किसी को भी नहीं छोड़ा और सबों का माल व पैसे लूट लिये. गौस ए आजम को नन्हा जान कर किसी ने नहीं छेड़ा. चलते-चलते जब एक डाकू ने यूं ही पूछ लिया कि तुम्हारे पास क्या है. गौस ए आजम ने पूरी इमानदारी से कहा मेरे पास 40 दीनार है. वह मजाक समझा और आगे निकल गया. एक दूसरे डाकू के साथ भी यही सब हुआ. जब लूट का माल लेकर डाकू अपने सरदार के पास पहुंचे और नन्हें बच्चे का जिक्र किया तो सरदार ने बच्चे को बुलाकर कर मिलना चाहा. सरदार ने भी जब वही बातें पूछा तो गौस ए आजम ने जवाब में वही दोहराये कि मेरे पास चालीस दीनार हैं. तलाशी ली गई तो 40 दीनार निकले. डाकुओं ने जानना चाहा कि आप ने ऐसा क्यों किया. गौस ए आजम ने फरमाया सफर में निकलते वक्त मेरी मां ने कहा था हमेशा हर हाल में सच ही बोलना. इसलिए मैं दीनार गंवाना मंजूर करता हूं लेकिन मां की बातों के विरुद्ध जाना पसंद नहीं किया. गौस ए आजम की बातों का इतना असर हुआ कि सरदार समेत सभी डाकूओं गुनाहों से तौबा कर नेक इंसान बन गये. गौस पाक अपनी जिंदगी में मुसीबतें झेल कर वलायत के मुकाम तक पहुंचे. उन्हें वलायत में वह मुकाम हासिल हुआ जो किसी अन्य वली को नहीं मिला. इसलिए गौस ए आजम ने फरमाया मेरा यह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है. यह सुन कर संसार के सभी वलियों ने अपनी गर्दन झुका ली. मुल्क शाम में पीरों के पीर कहे जाने वाले हजरत मोहम्मद बिन उमर अबू बकर बिन कवाम ने भी गौस ए आजम के एलान पर अपनी गर्दन झुका ली. ख्वाजा गरीब नवाज सय्यदना मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुललाह अलैह मुल्क खरामां के एक पहाड़ में उन दिनों इबादत किया करते थे. जब आप गौस ए आजम का एलान सुने तो अपना सिर पुरी तरह जमीन तक झुका लिया और अर्ज किये गौस ए आजम आप का एक नहीं, बल्कि दोनों पैर मेरे सिर और आंखों पर है. गौस ए आजम परहेजगार, इबादत गुजार, पाकीजा, पाक व अल्लाह वालों के इमाम हैं. आप के हुक्म पर आम इंसान ही नहीं बल्कि सभी वली भी अमल करते हैं. अल्लाह ने गौस ए आजम को वह बलुंद मुकाम अता फरमाया कि वह अपनी नजर ए वलायत से वह सब कुछ देख लेते, जहां तक किसी आम इंसान की नजर, अक्ल व सोच भी नहीं जाती. गौस ए आजम की मजलिस में चाहने वालों का मजमा लगा होता था. लेकिन आप की आवाज में अल्लाह ने वह असर दिया था कि जैसे नजदीक वालों को आवाज सुनाई देती थी, वैसी ही दूर वालों को भी. गौस ए आजम की पैदाइश रमजान महीने में हुई थी. जन्म के समय ही आप सेहरी से इफ्तार तक मां का दूध नहीं पीते. जिस तरह रोजेदार रोजा रखता है, उसी तरह आप मां का दूध केवल सेहरी व इफ्तार के वक्त पीते थे. आप जब दस साल के हुए और मदरसा में पढ़ाई करने जाया करते थे तो फरिश्ते आते और आप के लिए मदरसा में बैठने की जगह बनाते थे. फरिश्ते दूसरे बच्चों से कहते थे अल्लाह के वली के लिए बैठने की जगह दो. आप का लकब मोहिउद्दीन है. जिसका अर्थ मजहब को जिंदा करने वाला है. आप मजहब की तबलीग करने के लिए बगदाद गये. आप ने 521 हिजरी में बगदाद में लोगों को मजहब व दीन की बातें फैलाने के लिए बयान फरमाये और 40 सालों तक अर्थात 561 हिजरी तक मुसलसल बहुत मजबूती से नेकी व मजहब की बातों को फैलाते रहे. आप की मजलिस में लोगों की भीड़ उमड़ती. भीड़ को देखकर ईदगाह में बयान देना शुरू किये, लेकिन वहां भी जगह कम पड़ जाती इसके बाद शहर से बाहर दूर खाली जगहों पर जाकर बयान करते. उस जमाने में मजलिस में 70-70 हजार लोगों की भीड़ उमड़ आती थी. रवायत है कि आपका बयान सुनने के लिए जिन्नात भी आया करते थे. आप के पास बेशुमार इल्म था. जिसका फायदा दुनिया को मिला और इस्लाम नये सिरे से जिंदा हुआ.
खुदा के फज़्ल से हम पर है साया गौसे आजम का, हमें दोनों जहां में है सहारा गौसे आजम का। जनाबे शेख दूल्हा और बाराती औलिया होंगे, मजा दिखलाएगा महशर में सेहरा गौसे आजम का।
Father"pita"
हज़रत शेख़ jilani के पिता सय्यद वंशावली से थे। लोगों द्वारा संत के रूप में सम्मानित किया गया था,
Education "shiksha"
हज़रत शेख Abdul qadir jilani ने अपने प्रारंभिक जीवन को अपने जन्मस्थान शहर गिलान में बिताया। 1095 में, अठारह साल की उम्र में, वह बगदाद गए। वहां, उन्होंने अबू सईद मुबारक मखज़ुमी और इब्न अकिल के तहत हनबाली कानून का अध्ययन किया। उन्हें अबू मोहम्मद जाफर अल-सरराज द्वारा हदीस पर सबक दिए गए थे।.उनका सूफी आध्यात्मिक प्रशिक्षक praimry education अबू-खैर हम्मा इब्न मुस्लिम अल-डब्बा थे। (उनके विभिन्न शिक्षकों और विषयों का एक विस्तृत विवरण नीचे शामिल किया गया है)। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद,हज़रत गिलानी ने बगदाद छोड़ दिया। उन्होंने इराक के रेगिस्तानी क्षेत्रों में एक समावेशी भटकने वाले के रूप में पच्चीस वर्ष बिताए।
Goos-e-azam ke mazar shareef ka gilaf
अल-सय्यद मुहियुद्दी अबू मुहम्मद अब्दल क़ादिर जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी (जन्म: 11 रबी उस-सानी, 470 हिज्री, नाइफ़ गांव, जीलान जिला, इलम प्रान्त, tabrestaan, पर्शिया। देहांत - iraq 8 रबी अल अव्वल, 561 हिज्री शहर bagdaad] (1077–1166 CE), ईरान से थे। humbaliन्यायसूत्र परंपरा और सूफ़ी संत। इनका निवास बगदाद शहर। इनहोंने kadriyat सूफ़ी "taditinal "परंपरा की शुरूआत की। सुनी मुसलमानों द्वारा शेख 'अब्द अल-क़दीर अल-जिलानी के रूप में लघु या आदरणीय के लिए अल-जिलानी है, एक सुन्नी हनबाली प्रचारक, वक्ता, तपस्वी, रहस्यवादी, न्यायवादी, और धर्मविज्ञानी थे जो कदिरिया के नामांकित संस्थापक होने के लिए जाने जाते हैं जो सुन्नी सूफीवाद का आध्यात्मिक क्रम था।
Bareilly ke azam nagar se rawana hui goos-e-azam ki chadar
Bareilly ke azam nagar se badi dhum dham se goos-e-azam dast geer ke mazar shareef ka gilaf sare bareilly me ghuma sari bareilly me goose azam k urs ki dhum hai
Bareilly se bagdaad shareef ke liye
tur 10 -10-2018 rawana hua hai sabhi loog train doara rawana hue fir delhi se hawai jahaz se rawana hoge.
ग्यारहवी शरीफ की हकीकत (Gyarvi Sharif Ki Hakikat
11vi sharef asal me huzur goos-e-azam ke urs ki tareekh ki wajha se mashur hai 11 tareekh ko huzur goos-e-azam ka kull shareef bagdaad me manaya jata hai
Is din sabhi musalman
अब्दुल-कादिर जीलानी का मकबरा, या हज़रत कादिरिया, iraq की राजधानी bagdaad में स्थित कदिरिया सूफी आदेश के संस्थापक hazrat abdul kadri jilani को समर्पित एक इस्लामी धार्मिक परिसर है। इसके आसपास के वर्ग को जीलाानी स्क्वायर के रूप में नामित किया गया है। मस्जिद परिसर, मकबरा और कदिरिया पुस्तकालय के रूप में जाना जाता है पुस्तकालय जो इस्लामी अध्ययन से इस्लामी इतिहास सम्बंधित कार्य करता है
11 vi shareef ki 11 tareekh ko huzur goos-e-azam ka kull shareef manaya jata hai door door se zaereen bagdaad shareef tashreef late hai or apni duae qubul karwate hai
Bagdaad shareef me goos-e-azam ke asthane par har jaiz duae qubul hoti hai.
Attec 2007"bagdaad
28 मई 2007 को, दरगाह को एक कार बम हमले द्वारा लक्षित किया गया जिसमें 24 लोगों की मौत हो गई थी और 68 घायल हो गए थे। इस हमले ने दरगाह और मस्जिद को गंभीर नुकसान पहुंचाया था और बाहरी दीवार, एक गुंबद और मीनार को नष्ट हो गया था जिसका पुनः निर्माण कराया गया।
क़ादिरिया परंपरा की आध्यात्मिक शृंखला
- Hazrat mohummad
- Ameer-ul-momeneen Ali ibne Abi talib
- शेख़ ख़वाजा Hasan basri
- शेख़ हबीब अजमी
- शेख़ dawud taai
- शेख़ maruf karsi
- शेख़ sirri sakti
- शेख़ juned al bagdaadi
- शेख़ Abu bakr shibli
- शेख़ Aziz al tamimi
- शेख़ wahid al tamimi
- शेख़ Farha tatursi
- शेख़ Hasan qureshi
- शेख़ Abu saeed al mubaraq mukarrmi
- शेख़ सय्यद अब्दुल-क़ादिर जीलानी
Sheikh Abdul Qadir jilani ke khaleefa
(1) Khwaja =shahab al deen suharbardi
(2) हज़रत =Abu madyaan
(3) शाह=Abu umar qureshi mazruki
(4) शेख़ =Qareeb Albaan mosali
(5) शेख़ अह्मद बिन मुबारक्
(6) शेख़ Abu saeen shibli
(7) शेख़ अली हद्दाद
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