Taajush Shariah Mufti Muhammad Akhtar Raza Khan Qadri Al-Azhari mian
जांनशीने हिंद मौलाना अख्तर रजा खां उर्फ अजहरी मियां की पैदाइश दो फरवरी 1943 को सौदागरान में हुई थी। उनके वालिद का नाम मौलाना इब्राहीम रजा खां था। वह मुफ्ती आजमे हिंद के नवासों में लगते हैं। अजहरी मियां की शुरूआती तालीम मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में हुई। उन्होंने यहां उर्दू के अलावा फारसी की भी तालीम हासिल की। सन् 1952 में एफआर इस्लामिया इंटर कालेज में दाखिला लेकर हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की।
कॉलेज लेवल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजहरी मियां सन् 1963 में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिस्त्र के शहर काहिरा की विश्वप्रसिद्ध जामिया अजहरिया यूनिवर्सिटी चले गए। उन्होंने वहां दाखिला लेने के बाद कुल्लिया उसूल दीन यानी एमए की तालीम लेनी शुरू की। अजहरी मियां सन् 1966 में मिस्त्र से तालीम हासिल करके वापस बरेली लौटे, तभी से उनके नाम के आगे अजहरी लग गया और लोग उन्हें अजहरी मियां कहने लगे। सन् 1967 में उन्होंने मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में तालीम देना शुरू किया।
Azhari mian ने पहला फतवा सन् 1966 में लिखा और फिर उसे मुफ्ती आजमे हिंद मौलाना मुस्तफा रजा खां को दिखाया। इस फतवे को देखकर मुफ्ती आजमे हिंद मौलाना मुस्तफा रजा खां इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अजहरी मियां से दारुल इफ्ता में आकर फतवा लिखने को कहा।
तीन नवंबर 1968 को उनका निकाह कांकरटोला स्थित हजरत हसनैन मियां की साहबजादी से हुआ। उनके एक बेटे मौलाना असजद रजा खां के अलावा पांच बेटियां हैं। सन् 1982 में उन्होंने मरकजी दारुल इफ्ता की स्थापना की। इसके बाद सन् 2000 में मदरसा जामिया तुर्र रजा की भी स्थापना की।
आला हजरत खानदान में पैदा हुए ताज्जुशरीया हजरत मौलाना अख्तर रजा खां अजहरी मियां की पूरी जिंदगी मसलके आला हजरत को आगे बढ़ाने में गुजरी। आला हजरत खानदान में मजहबी तालीम हासिल करने वाले लोगों में वह बचपन से ही वह अव्वल रहते थे। उनकी शुमारी उर्दू, फारसी और अरबी के बड़े आलिमों में होती थी। आला हजरत मौलाना अहमद रजा खां की अनगिनत किताबों का उन्होंने उर्दू में तर्जुमा किया था। अजहरी मियां की नातिया शायरी तो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी पसंद की जाती है।
Misr se wapsi par apko Azhari khitab se nawaza gaya
मिस्र से लौटे तो कहलाए अजहरी मियां
आला हजरत खानदान में पैदा हुए अजहरी मियां की पूरी जिंदगी मसलके आला हजरत को आगे बढ़ाने में गुजरी। आला हजरत की अनगिनत किताबों का उन्होंने उर्दू में तर्जुमा भी किया है। अजहरी मियां की नातिया शायरी देश ही नहीं विदेशों में भी काफी पसंद की जाती है। अजहरी मियां का जन्म दो फरवरी 1943 को हुआ था। उनकी शुरुआती तालीम मदरसा दारूल उलूम मंजरे इस्लाम मे हुई। उन्होंने यहां पर उर्दू के अलावा फारसी की भी तालीम हासिल की। 1952 में इस्लामियां इंटर कॉलेज में दाखिला लेकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो 1963 में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिस्र के शहर काहिरा की विश्व प्रसिद्ध अजहरिया यूनिवर्सिटी चले गए और वहां से तालीम लेने के बाद 1966 में वापस लौटे, तभी से उनके नाम के आगे अजहरी लग गया।
जांनशीने हिंद मौलाना अख्तर रजा खां उर्फ अजहरी मियां की पैदाइश दो फरवरी 1943 को सौदागरान में हुई थी। उनके वालिद का नाम मौलाना इब्राहीम रजा खां था। वह मुफ्ती आजमे हिंद के नवासों में लगते हैं। अजहरी मियां की शुरूआती तालीम मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में हुई। उन्होंने यहां उर्दू के अलावा फारसी की भी तालीम हासिल की। सन् 1952 में एफआर इस्लामिया इंटर कालेज में दाखिला लेकर हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की।
कॉलेज लेवल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अजहरी मियां सन् 1963 में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिस्त्र के शहर काहिरा की विश्वप्रसिद्ध जामिया अजहरिया यूनिवर्सिटी चले गए। उन्होंने वहां दाखिला लेने के बाद कुल्लिया उसूल दीन यानी एमए की तालीम लेनी शुरू की। अजहरी मियां सन् 1966 में मिस्त्र से तालीम हासिल करके वापस बरेली लौटे, तभी से उनके नाम के आगे अजहरी लग गया और लोग उन्हें अजहरी मियां कहने लगे। सन् 1967 में उन्होंने मदरसा दारुल उलूम मंजरे इस्लाम में तालीम देना शुरू किया।
Snjaydat ne jab azhari miya yani tajushariya se mulaqat karni chahi to apne saaf inkar kar diya
yha tak ki Rahul gandhi or amar singh jesi hastiyo ko bhi milne se mana kardiya.
Azhari mian ने पहला फतवा सन् 1966 में लिखा और फिर उसे मुफ्ती आजमे हिंद मौलाना मुस्तफा रजा खां को दिखाया। इस फतवे को देखकर मुफ्ती आजमे हिंद मौलाना मुस्तफा रजा खां इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अजहरी मियां से दारुल इफ्ता में आकर फतवा लिखने को कहा।
तीन नवंबर 1968 को उनका निकाह कांकरटोला स्थित हजरत हसनैन मियां की साहबजादी से हुआ। उनके एक बेटे मौलाना असजद रजा खां के अलावा पांच बेटियां हैं। सन् 1982 में उन्होंने मरकजी दारुल इफ्ता की स्थापना की। इसके बाद सन् 2000 में मदरसा जामिया तुर्र रजा की भी स्थापना की।
आला हजरत खानदान में पैदा हुए ताज्जुशरीया हजरत मौलाना अख्तर रजा खां अजहरी मियां की पूरी जिंदगी मसलके आला हजरत को आगे बढ़ाने में गुजरी। आला हजरत खानदान में मजहबी तालीम हासिल करने वाले लोगों में वह बचपन से ही वह अव्वल रहते थे। उनकी शुमारी उर्दू, फारसी और अरबी के बड़े आलिमों में होती थी। आला हजरत मौलाना अहमद रजा खां की अनगिनत किताबों का उन्होंने उर्दू में तर्जुमा किया था। अजहरी मियां की नातिया शायरी तो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी पसंद की जाती है।
Misr se wapsi par apko Azhari khitab se nawaza gaya
मिस्र से लौटे तो कहलाए अजहरी मियां
आला हजरत खानदान में पैदा हुए अजहरी मियां की पूरी जिंदगी मसलके आला हजरत को आगे बढ़ाने में गुजरी। आला हजरत की अनगिनत किताबों का उन्होंने उर्दू में तर्जुमा भी किया है। अजहरी मियां की नातिया शायरी देश ही नहीं विदेशों में भी काफी पसंद की जाती है। अजहरी मियां का जन्म दो फरवरी 1943 को हुआ था। उनकी शुरुआती तालीम मदरसा दारूल उलूम मंजरे इस्लाम मे हुई। उन्होंने यहां पर उर्दू के अलावा फारसी की भी तालीम हासिल की। 1952 में इस्लामियां इंटर कॉलेज में दाखिला लेकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी की भी तालीम हासिल की। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो 1963 में मजहबी तालीम हासिल करने के लिए मिस्र के शहर काहिरा की विश्व प्रसिद्ध अजहरिया यूनिवर्सिटी चले गए और वहां से तालीम लेने के बाद 1966 में वापस लौटे, तभी से उनके नाम के आगे अजहरी लग गया।
ताजुश्शरीया पर लिखी गईं कई किताबें
अजहरी मियां पर कई किताबें लिखी गईं हैं। इसमे फिलहाल जो किताबें सामने हैं। उसमें हयात ताजुश्शरीया, करामाते ताजुश्शरीया और नवदिरात ताजुश्शरीया है। यह सभी किताबें मौलाना शहाबुद्दीन ने लिखी हैं। इसके अलावा एक और किताब जो छप रही है वो है सऊदी हुकूमत के जुल्म की कहानी ताजुश्शरीया की जुबानी। यह किताब भी जल्द आएगी।
हर कदम दरगाह की ओर
अजहरी मियां के पर्दा करने की खबर जैसे ही उनके मुरीदों तक पहुंची बाजार बंद हो गए और हर कोई दरगाह स्थित उनके घर पहुंचने लगा। देर रात तक हजारों की संख्या में मुरीद दरगाह पर पहुंच चुके थे। अजहरी मियां के इंतकाल की सूचना पर देश ही नहीं विदेशों से भी उनके मुरीद बरेली पहुंच रहे हैं। अजहरी मियां की नमाज ए जनाजा रविवार को सुबह दस बजे इस्लामिया इंटर कॉलेज में होगी।
अजहरी मियां के पर्दा करने की खबर जैसे ही उनके मुरीदों तक पहुंची बाजार बंद हो गए और हर कोई दरगाह स्थित उनके घर पहुंचने लगा। देर रात तक हजारों की संख्या में मुरीद दरगाह पर पहुंच चुके थे। अजहरी मियां के इंतकाल की सूचना पर देश ही नहीं विदेशों से भी उनके मुरीद बरेली पहुंच रहे हैं। अजहरी मियां की नमाज ए जनाजा रविवार को सुबह दस बजे इस्लामिया इंटर कॉलेज में होगी।
Azhari miya Deen ke sachche or pakke the wo shariyat ke samne kisi bhi baat ko ahmiyat nahi dete the tajushariya ki tamam zindigi shariyat ke ahkaam poore karne me guzri tajushariya shariyat ke taj the hai or rhenge .
azhari miya ne 65 kitabe urdu arbi or bhi bhashao me likhi unme se kuch ye hai
- Hijrat-e-Rasool
- Aasaar-e-Qiyamat
- AL-Haq-ul-Mubeen (Arabic and urdu)
- Safeenah-e-Bakhshish (Na'at collection)
- Fatwa Taj-us-Shari'ah.
azhari mian ne 20 july 2018 ko 77 saal ki umar me is fani duniya se ruksat kiya
apke janaze ki namaz millions log shamil hue the easa janaza ajj tak kisi ne nahi dekha is kadar log the shumar lagana mushkil tha.
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