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Tuesday, 22 January 2019

Doorud shareef ki fazilat||doorud shareef ki barkat||2019


फैजाने दुरुद ओ सलाम

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अल्लाह तबारक व ताला irshad फरमाता है
"Inallaha wa malaikatahu you salona Alan Nabi ei yaa ayiohal lazina amanu sallu alehi wasallemu tasleema"


"बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते doorud भेजते हैं उस समय बताने वाले नबी पर है इमान वालों उन पर doorud और खूब सलाम भेजो"

( तर्जुमा कंझुल इमान)


{Assala to wassala moalika yaa rasullallah
Wa alla aleqa wa ashaveqa yaa habib allah}




यकीनन सरकारी मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम पर दुरुद ओ सलाम भेजने के बेशुमार फाइलों बरकात है इनको बयान करना मुमकिन नहीं

दुरु शरीफ के फसल में बेशुमार कुतुब कश्मीर की जा चुकी हैं इसके फ जाइलो सम्राट अक्सर मोबलिए इन बयान करते रहते हैं कलम की रचनाएं तो खत्म हो सकती है बयान के अल्फाज भी खत्म हो सकते हैं मगर पराई ले दुरुद ओ सलाम खैरुल अनाम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम का यह आता नहीं हो सकता।

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दिन हो या रात हमें अपने मोहसिन वो अनुसार आका सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम पर दुरुद ओ सलाम की फुल निछावर करते ही रहना चाहिए इसमें कोताही नहीं करनी चाहिए न्यू भी सरकारे मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के हम पर बेशुमार ऐसा नाथ हैं इतने सैयदना आमीना अल्लाह ताला अन्हा से दुनिया ए दिल में जलवा अफरोज होते ही आपने सही फरमाया और होठों पर यह दुआ जा रही थी रब्बी हबली उम्मती रब्बी हबली उम्मती यानी परवरदिगार मेरी उम्मत मेरे हवाले फरमा
रब्बी हबली उम्मती कहते हुए पैदा हुए हक ने फरमाया के बख्शा अस्सलातो वस्सलाम




रहमते आलम सल्लल्लाहो ताला आने वाले सल्लम सफर ए मेराज पर रवानगी के वक्त उम्मत आशाओं को याद फरमा कर आप दीदा हो गए दीदार ए खुदा बंदी और उस उसी नवाज शाद के वक्त भी गुनाहगार आने उम्मत को याद फरमाया उम्र भर गुनाहगार ए उम्मत के लिए गमगीन रहे लिहाजा मोहब्बत और अकीदत बल्कि मोहब्बत का भी यही तक आ जाएगी हम खवारे उम्मत की याद और दुरुद ओ सलाम से कभी गलत ना की जाए।



जो ना भुला हम गरीबों को राजाज़िक्र उसका अपनी आदत कीजिए


अगर कोई शख्स किसी पर एहसान करें तो चाहिए कि मौसम का बदला दिया जाए अगर बदला ना हो सके तो कम कम उसके लिए दुआ कर दी जाए अगर किसी के घर दावत खाएं तो उसके लिए भी दुआ करें और फरमाया प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के हम पर कितने एहसान आते हैं मगर यह कब मुमकिन है कि हम उनका शुक्रिया अदा कर सके बस इतना ही करें कि उन पर दुरुद ओ सलाम के तोहफे भेजा करें यानी अब आप सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम के हक में दुआ ए रहमत किया करें जैसे फुकरा सुखदाता को दुआएं देते हैं।


शुक्र एक कर्म का भी अदा हो नहीं सकता
दिल तुम पर फिदा जाने हसन तुम पर फिदा हो


"अस्सलातू वस्सलामू मोअलाइका या रसूल अल्लाह वा अला अली का वा अशाबिक़ या नूर अल्लाह"


मुस्कुरा वाला आयते करीमा सरकारे मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम की सही नाथ है इस में ईमान वालों को प्यारे मुस्तफा पर दुरुद ओ सलाम भेजने का हुक्म दिया गया है उसकी बात यह है कि अल्लाह ने कुरान ए करीम में काफी ए कमार साबिर फरमाए मसलन नमाज रोजा हज वगैरा-वगैरा
मगर किसी जगह यह इरशाद नहीं फरमाया।


कि यह काम हम भी करते हैं हमारे फरिश्ते भी करते हैं और इमान वालों तुम भी किया करो
सिर्फ दरूद शरीफ के लिए ही ऐसा फरमाया है कि यह काम हम भी करते हैं हमारे फरिश्ते भी करते हैं इमान वालों तुम भी मेरे प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम पर दुरुद ओ सलाम भेजा करो
इसकी वजह बिल्कुल जाहिर है क्योंकि कोई काम भी ऐसा नहीं जो खुदा का भी हो और बंदे का भी यकीनन अल्लाह तबारक व ताला के काम हम नहीं कर सकते और हमारे कामों में वह बुलंद ओ वाला है अगर कोई काम ऐसा है जो अल्लाह का भी हो मलाइका का भी हो और मुसलमानों को भी उसका हुक्म दिया गया हो वह सिर्फ और सिर्फ आकाश दो जहां सल्लल्लाहो ताला आने वाले वसल्लम पर दुरुद भेजना है जिस तरह हिलाले ईद पर सबकी नजरें जमा हो जाती हैं इसी तरह मदीने के चांद पर सारी मखलूक की और खुद खालिक की भी नजर है।


"जिनके हाथों के बनाए हुए हुस्नो जमाल
हंसी तेरी अदा उसको पसंद आई है"



ऐसा तुझे खालिक ने तरह दार बनाया
युसूफ को तेरा तालिब ए दीदार बनाया



अल्लाह ताला का दुरूद है रहमत नाजिल फरमा ना जबकि फरिश्तों और हमारा दुरु दुआएं रहमत करना है
अल्लाह ताला ने आयते मुबारक का में यह खबर दी है कि हम हर आन और हर घड़ी अपने प्यारे महबूब सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम पर रहमतों की बारिश बरसाते हैं यहां एक सवाल पैदा होता है कि जब अल्लाह खुद ही रहमते नाजिल फरमा रहा है तो हमें दुरु शरीफ पढ़ने यानी रहमत के लिए दुआ मांगने को क्यों हुक्म दिया जा रहा है क्योंकि मांगी वह चीज जाती है जो पहले से हासिल ना हो तो जब पहले से ही से रहमते उतर रही हैं फिर मांगने का हुक्म क्यों दिया।




इसका जवाब यह है कि कोई सवाली किसी दरवाजे पर मांगने जाता है तो घरवाले के मालों अब लाल के हक में दुआ मांगता हुआ जाता है सखी के बच्चे जिंदा रहे माल सलामत रहे घर आबाद रहे वगैरा-वगैरा जब यह दुआ मालिक के मकान सुनता है तो समझ जाता है कि यह बड़ा मोहन जम सवाली है बीरमाना चाहता है मगर हमारे बच्चों की हर मांग रहा है खुश होकर कुछ ना कुछ झोली में डाल देता है यहां हुक्म दिया गया है ईमान वालों जब तुम हमारे यहां कुछ मांगने आओ तो हम तो ऑल नात ए पाक हैं मगर हमारा प्यारा हबीब सल्लल्लाहो ताला आने वाले वसल्लम है मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला ले वाले सल्लम उस हबीब सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम की उसके अहले बैत की और उसके आसाम की खीर मांगते हुए उनको दुआएं देते हुए आओ तो जिन पर रहमतों की बारिश हो रही है उसका तुम पर भी छूटा डाल दिया जाएगा दुरु शरीफ पढ़ना दरअसल अपने परवरदिगार की बार गांव में मांगने की एक आला तरकीब है।
वही रब है जिसने तुझको हम तन कर्म बनाया
हमें भीख मांगने को तेरा आश्ता बनाया



न्यू इस आयत ए मुकद्दस आम में मुसलमानों को खबरदार फरमाया किए दुरुद ओ सलाम पढ़ने वालों हर दिन हर गीत यह गुमान भी न करना कि हमारे महबूब सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम पर हमारी रहमते तुम्हारे मांगने पर मोक़ूफ़ है। और हमारे महबूब सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम तुम्हारे दुरुद ओ सलाम के मोहताज हैं तुम दुरूद पढ़ा होया ना पड़ो इन पर हमारी रहमते बराबर बरसती ही रहती हैं तुम्हारी पैदाइश और तुम्हारा दुरुद ओ सलाम पढ़ना तो अब हुआ प्यारे हबीब सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम पर रहमतों की बरसात तो जब से है जब कि जब और कब भी न था जहां और वहां कहां से भी पहले इन सब रहमते ही सहमत हैं तुमसे दुरुद ओ सलाम परवाना यानी प्यारे हबीब महबूब मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के लिए दुआएं रहमत मंगवाना तुम्हारे अपने ही फायदे के लिए है तुम दुरुद ओ सलाम पढ़ोगे तो इनमें तुम्हें कसी नज्रो सवाब मिलेगा !




आसलातो वसलाम मोअलेका या रसूल अल्लाह
वा अला अलैका वा अस हबिक़आ या हबीब अल्लाह



दूरूद्रओ सलाम पढ़ने वाले आपको मुबारक हो जब आप एक बार दुरु शरीफ पढ़ते हैं तो अल्लाह 10 बार रहमत भेजता है 10 बार दर्ज आज बुलंद करता है 10 बार ने किया आता फरमाता है 10 गुना मिटाता है 10 गुलाम आजाद करने का सवाब और 20 वर्ष बाद में
शमूल्ईयत का सवा आता फरमाता है

( जस्ब उल कुलूब)



दुरूद ए पाक सबसे हो बोलिए थी दुआ है इसके पढ़ने से शपथ ए मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम वाजिब हो जाती है मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम का बाबे जन्नत पर पूर्व नसीब होगा दुरूद ए पाक तमाम परेशानियों को दूर करने के लिए और तमाम आजाद की तक मिल के लिए काफी है मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों सलाम दुरूद ए पाक गुनाहों का कपड़ा है सदका का कायम मकाम बल्कि सदके से भी अफजल है ।



दुरु शरीफ से मुसीबतें चलती हैं बीमारियों से शिफा हासिल होती है ऑफ दूर होता है जुल्म से निजात हासिल होती है दुश्मनों पर फतह हासिल होती है अल्लाह की रजा हासिल होती है और दिल में उसकी मोहब्बत पैदा होती है रिश्ते उस का जिक्र करते हैं कमाल की तकलीफ होती है दिलों जान स्पा भोपाल की टॉकीज की हासिल होगी पढ़ने वाला खुशहाल हो जाता है बरकते हासिल होती हैं और लाद औलाद चार नस्लों तक बरकत रहती है।



दुरु शरीफ पढ़ने से क़यामत की और ना क्यों से निजात हासिल होती है सकरात ए मौत में आसानी होती है दुनिया की तबाह कार्यों से नजात मिलती है तंग दस्ती दूर होती है भूली हुई चीजें याद आ जाती हैं मलाइका दुरूद पढ़ने वाले को घेर लेते हैं दुरु शरीफ पढ़ने वाला जब पुल सिरात से गुजरेगा तो नूर फैल जाएगा और वह उसमें साबित पदम होकर पलक झपक ने में निजात पा जाएगा और अधिकतर आदत यह है कि दुरु शरीफ पढ़ने वाले का नाम और दूसरा पर ताजदार ए मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की बारगाह में पेश किया जाता है ताजदार ए मदीना हबीबे करीम सल्लल्लाहो ताला वसल्लम की मोहब्बत बढ़ती है महाशय ने नव्या दिल में घर कर जाती है और कसरत ए दुरु शरीफ से साहिबे लोलार्क सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम का तसव्वुर में कायम हो जाता है और खुश नसीबों को दर्ज एक कुर्बतें मुस्तफा मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम हासिल हो जाता है और ख्वाब में सरकार सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम का दीदार ए फेस नसीब होता है रोजा कयामत मदनी ताजदार सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम से मुसाफा की शहादत नसीब होगी फरिश्ते मरहबा कहते हैं और मोहब्बत रखते हैं फरिश्ते उसके दूध को सोने के कलश से चांदी की तख्ती ऊपर लिखते हैं और उसके लिए दुआ ए मगफिरत करते हैं और फरिश्ते से आई यानी जमीन पर शेयर करने वाले फरिश्ते उसके दुरु शरीफ को मदनी सरकार सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की बारगाह  में पढ़ने वाले और उसके बाप के नाम के साथ पेश करते है।


साआदते उजमा


शेख अब्दुल हक मुहड्डिस देहलवी रहमतुल्लाह ताला अन्हू "जजबुल कूलूब" मैं फरमाते हैं की दुरुद ओ सलाम पेश करने वाले के लिए सहादत दर्श आदत यह है कि उसे सरकारे मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम बन्ना से नफीस जवाब दे सलाम से मुशर्रफ फरमाते हैं एक अदना गुलाम के लिए इससे बाल आदर्श आदत और कौन सी हो सकती है की रहमते आलम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम खुद जवाब सलाम की सूरत में दुआ ए खैर ओ सलाम की फरमाएं अल्लाह तमाम उम्र में सिर्फ एक बार भी अशरफ हासिल हो जाए तो हसरतों करामत और पैरों सलाम टीका मौजूद है इससे बड़ी खुशी की और कोई बात हो नहीं सकती कि हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम हमारे सलाम का जवाब दे सलाम वैसे ही भी एक दुआ है और उसके बदले में हमें सामने से दुआ मिले और वह दुआ भी हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के मुबारक से हो क्या कहने जिंदगी और आप दोनों ही संवर जाएंगे इंशाअल्लाह दूध पढ़ने की आदत जरुर डालेंगे।


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"यही आरजू हो जो सूर मिले दो जहां की आबरू
मैं हूं गुलाम हूं आपका वह कहे हमको कबूल है"




आशिक़ होतो ऐसा

कुत्तिया ना जूनागढ़ स्टेट इंडिया में एक संग तराश रहा करता था जो जबरदस्त आशिक ए रसूल सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम और मदीने का दीवाना था दुरुद ओ सलाम से उसे बड़ी मोहब्बत थी दुरुद ओ सलाम की बड़ी मशहूर व मारूफ किताब दलाईलूल खैरात उसे बरियानी जवानी याद थी उसका मामूल था कि जब भी कोई पत्थर तराश था तो इस दौरान दलाईलूल खैरात शरीफ का एक बाब पड़ता।
एक बार हज के पुरवा हर मौसम में जबकि आशिकों के काफिले के काफिले हरमैन दयाबेन की तरफ प्रवाह दवा थे इसकी किस्मत का सितारा भी चमक उठा हुआ यूं कि एक रात जब सोया तो दिल की आंखें खुल गई क्या देखता है कि वह मस्जिद-ए-नबवी सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के पास हाजिर हैं और वाली एबेकस आन मदीने के सुल्तान नबी ए अकरम आन रहमते आलम सल्लल्लाहो ताला ले वाले से लंबी जलवा फरमा हैं सब शब्द घुमत के अनुसार में फंसा मुनव्वर हो रही है और नूरानी मीनार भी नूर बरसा रहे हैं मगर एक मीनार मुबारक का कुंभ राशि का था यानी टूट गया था इतने में रहमते आलम सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के लवर मुबारक को जुंबिश हुई फूल झड़ने लगे और अल्फ़ाज़ यू कुछ इस तरह तरतीब पाएं दीवाने वह देखो हमारे नूर बार मीनार का एक कोंगरा टूट गया है तुम हमारे मदीने में आओ और इस कमरे को जल्द से जल्द सरे नव बना दो।



जब आंख खुली कानों में बाली ए मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम के मुबारक काली मां गूंज रहे थे मदीने का बुलावा आ चुका था मगर यह सोचकर आंखों से आंसू छलक पड़े कि मैं तो बहुत गरीब हूं मेरे पास मदीने की हाजरी के मसाईल कहां लेकिन इश्क ने धार सारस बनाई बेताब अर्जुन ने दिलासा दिया कि तुम्हें खुश सुल्तान ए मदीना सलाम ताला अलैहि वसल्लम ने बुलाया है तुम व साहिल की फिक्र क्यों करते हो उम्मीद बंध गई और क्यों ना हो कि जब बुलाया आका ने खुद ही इंतजाम हो जाए



 दीवाने ने रस्ते सफर बांदा और औजार का थैला कंधे पर चढ़ाया और पूर्व अंदर की बंदरगाह की तरफ जबाने हाल से यह गुनगुनाता हुआ चल पड़ा



 कहां का मनसब कहां की दौलत कसम खुदा की है यह हकीकत जिन्हें बुलाया है मुस्तफा सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने वहीं मदीने को जा रहे हैं उधर पोरबंदर की बंदरगाह पर सफी ने मदीना तैयार खड़ा था मुसाफिर पूरे हो चुके थे लंगर उठा दिए गए थे मगर अजीब तमाशा था कि कप्तान की कोशिश के बावजूद सफीना ए मदीना जुंबिश करने का नाम तक ना लेता था इतने में जहाज के हमले में से किसी की नजर दूर से झूमते हुए आते हुए दीवाने पर पड़ी हमले के लोग समझे कि शायद इस जहाज में मदीना बाकी रह गया है इस जाल में एक और मुसाफिर बाकी रह गया है जो मदीना जाने वाला है जहाज जो कि गहरे पानी में खड़ा था लिहाजा दीवाने को लेने के लिए एक किश्ती आई दीवाना इस किश्ती के जरिए सपने में सवार हो गया इसके सवार होते ही सफीना झूमता हुआ वह मदीना चल पड़ा ना किसी ने उसे टिकट बगैरा मांगा ना उसके पास था बिल आहिर दीवाना मदीने पहुंच गया अब दीवाना जहाज़ की तरफ बढ़ा चला जा रहा था कुछ खुदा में हराम की नजर जूही दीवानी पर पड़ी तो बहता पुकार उठे अरे यह तो वही है जिसका हुलिया हमें दिखाया गया है गोया खुद्दाम ए हरम शरीफ को दीवाने का दीदार करा दिया गया था बैंक एप्स दीवाने ने अश्क आंखों से सुनहरी जालियों पर हाजिरी दी फिर बाहर आकर ख्वाब में जो जगह दिखाई गई थी उसको बार देखा तो वाकई एक कुंग्रा शिकस्ता था।
अपनी कमर में रस्सी बांध कर खुद्दाम की मदद से दीवाना घुटनों के बल यानी हो कदम पर वाक्यत रखता है के तहत ऊपर चढ़ा अगर हुक्म ई मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम ना होता तो कोई आशिक गुंबद वा मीनार पर जाने की जरूरत तो हो जाए ऐसा करने के लिए सोच भी नहीं सकता और हंसबुओल इरशाद कुकरा शरीफ सारे नाव बनाया वहआ y वाह रे दीवाने दीवाने की खुश किस्मती तो देखिए जब दीवाने की बेताब रून ए सब्ज गुंबद का पूर्व पाया तो बेकरारी और इस तरह बेहद बढ़ गया दीवाना काम मुकम्मल कर चुका था और अब उसे नीचे आना था लेकिन उसकी रूह एम उतरने लड़ने से इंकार कर दिया जब दीवाने का वजूद नीचे आया तो देखने वालों के कलेजे फट गए क्योंकि दीवाने की रूटों कभी से सब शब्द घुमत की नाइयो पर निसार हो चुकी थी आह दीवाना दम तोड़ तोड़ चुका था जब तेरी याद में जब तेरी याद में दुनिया से गया है कोई जान लेने को दुल्हन बन कर कर जा आई है रॉकी नाथ असला तो बस सलाम अलेका या रसूल अल्लाह मौला अली का वहां बिका या रसूल अल्लाह



यह जो ऊपर एक दीवाने का किस्सा बयान किया गया है इसको मोहब्बत कीीी चाशनी से भरपूर वाक्य एक बार दावते इस्लामी के संतों की तबीयत के मदनी काफिले के साथ जब सगे मदीनााा शक्कर सा खा कर गया था तब  उस वक्त एक आदमी  अपनी थी ही बिरादरी के अमर बुजुर्ग हाजी अहमद  ने सुनाया था और उनको उनके ताया ने सुनाया था सुब्हान अल्लाह यह वाक्य किस कदर इश्क़़ से लव रेज है इस ईमान अफरोज वाक्यय को Sankara उसी वक्त एक बंदा या खुदा के दिल ने चोट खाई और जवान से कुछ इस तरह कि कल एमआर निकलेगी काश सगे मदीना जन्नत उल बकी में मीठी नींद सोने वाले उस आशिकी सादिक के कफन का कोई तारियानीी धागा होता मगर इंसान ना होता कि इस तरह एक आशिकी मदीना से  सीने से लग कर खा के वाक्य का पूर्व तो हासिल हो जाता।


 मैं मदीने की गली का कोई जरा होता
काश होता ना मैं इंसान मदीने वाले
 सल्ला वाले वसल्लम


अगर कोई आपको पसंद आए तो प्लीज हमारे ब्लॉग को लाइक शेयर एंड सब्सक्राइब कीजिए और हमें फॉलो कीजिए इस ब्लॉक में जो पोस्ट है यह पोस्ट फैजाने सुन्नत से ली गई है अगर कोई भी गलती या कोताही हो तो प्लीज माफ कीजिएगा और दुआ में याद रखिएगा अल्लाह से नेक्स्ट पोस्ट में मिलेंगे !


"हां दुरुद शरीफ के बारे में अभी और भी बहुत कुछ है इंशाल्लाह नेक्स्ट पोस्ट में उसे कवर करेंगे"


इस्लामिक नीलोफर 
अस्सलाम मयूअललेकुम व रहमतुल्ला हे व बरकातहू

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