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Friday, 8 February 2019

Khwaja gareb Nawaz ka photo||19 saal phale samne aya ||2019



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गरीब नवाज सैयद ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का आज तक कोई चित्र प्रचलन में नहीं हैं. गरीब नवाज का 803 वां उर्स हाल ही में सम्पन्न हुआ हैं. पहली दफा एक चित्र 19 वर्ष पहले 16 नवंबर 1996 को अजमेर के एक पाक्षिक अखबार ‘भभक’ ने अपने 784 वें उर्स विशेषांक अंक में छापा था. यह चित्र किसी खादिम ने ही मुहैया करवाया था.




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गरीब नवाज सैयद ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का आज तक कोई चित्र प्रचलन में नहीं हैं. गरीब नवाज का 803 वां उर्स हाल ही में सम्पन्न हुआ हैं. पहली दफा एक चित्र 19 वर्ष पहले 16 नवंबर 1996 को अजमेर के एक पाक्षिक अखबार ‘भभक’ ने अपने 784 वें उर्स विशेषांक अंक में छापा था. यह चित्र किसी खादिम ने ही मुहैया करवाया था.बताया जाता है कि कुछ इस्लामिक इतिहासकारों के अनुसार ग्यारहवीं सदी में अजमेर पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान का शासन था. सम्राट पृथ्वीराज चौहान की माता बहुत बड़ी ज्योतिषी थी. अपने ज्योतिषिय ज्ञान के आधार पर उन्होंने एक दिन पृथ्वीराज चौहान को कहा कि तेरे राज में अजमेर में एक सूफी संत आएगा. जिज्ञासावश पृथ्वीराज चौहान ने मां से पूछा कि उस सूफी संत की शक्ल कैसी होगी ? अपने बेटे की जिज्ञासा शान्त करने के लिए पृथ्वीराज चौहान की मां ने अपने इल्म से ख्वाजा साहब का एक चित्र रेखांकित किया.

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बाद में ख्वाजा साहब के अजमेर आने पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मां के बनाए चित्र को देखा तो यह ख्वाजा साहब की शक्ल से हूबहू मेल खाता था. यह दुर्लभ चित्र वही है जो ख्वाजा साहब का एकमात्र चित्र हैं.


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मेरे ख्याल से यह चित्र असली नहीं हो सकता क्योंकि पृथ्वीराज चौहान की मां ने इसे कल्पना कर कर बनाया था ख्वाजा साहब ने कभी अपना खुद का चित्र नहीं बनवाया और काल्पनिक चीजों पर विश्वास करना ठीक नहीं होता हां हम इसकी इज्जत कर सकते हैं क्योंकि ख्वाजा का नाम ही काफी है कल्पना में ही सही पृथ्वीराज चौहान की मां ने इस चित्र को ख्वाजा साहब को सोचकर अपने मन में उनका चेहरा लाकर इस चित्र को रेखांकित किया होगा इसलिए हमें इस चित्र की इज्जत करनी चाहिए और उस जमाने में कोई सूफी संत चित्र नहीं बनवाते थे और यह नाजायज भी है और ख्वाजा गरीब नवाज जैसी शख्सियत कभी कोई नाजायज और हराम काम कर भी नहीं सकते।





मेरे ख्वाजा की शान

मेरे ख्वाजा की शान में और क्या मैं लिखूं जितना लिखती हूं कम ही पड़ जाता है मेरे ख्वाजा की एक नहीं लाखों ऐसी बातें हैं जिनको जानकारी मान ताजा हो जाता है और दिल और रूह को सुकून मिल जाता है ख्वाजा साहब एक ऐसी शख्सियत है जो दिलों पर राज करते हैं उनके दरबार में जाकर कोई खाली नहीं आता मैंने यह बात खुद भी महसूस की है कि अगर हम किसी मजार शरीफ पर हाजिरी देने जाते हैं तो वहां हाजरी और फाताहआ करने के बाद लगता है कि अब चलो  घर चलते हैं और हम वापस घर आ जाते हैं दुनिया में कोई ऐसी मजार शरीफ नहीं जहां ऐसााा फील होता हो। 


मगर जब हम अजमेर शरीफ जाते हैं और दरगाह पर हाजिरी करतेे हैं और हमें याद भी नहीं होोता की कितनी देेर हो हमें घर भी वापस जाना है इस बात का हमेंंंं होश  भी नहीं रहता और जब कुछ दिन रोज हल्दी करते करते घर जाने का दिन करीब आता है तो दिल रोने लगताा है और वापस आने को बिल्कुल भी मन नहीं करता और आंखें आंसू बरसाती रहती हैं यह मेरा खुद का एक्सपीरियंस है । और यह एक बार नहींं मेरे साथ दो बार हुआ जब मैं अजमेर शरीफ गए जब बहुत सुकून  मिला  लगता था दुनिया की जन्नत यही है  और अजमेर जैसा सुकून मुझे कहीं नहीं मिला जब वापस जाने का दिन आता तो आंखें आंसू बरसाती आदिल रोज आता कि फिर से उस बेकार सी दुनियाा में वापस क्यों जाना है ।


काश हम यहीं रह जाते यहीी हमारा घर हो जाता और आखरी दिन जब दरगाह में हरी होती है तो बाहर निकलने का बिल्कुल भी दिल नहींं करता दुआ मांगने भी नहीं आतीीीीी बस रोना  ही आता है आदिल बस यही कहता है कि हम वापस क्यों जा रहेे हैं काश कुछ दिन और हमें यहां रुकनेे को मिल जाता मैंने वहां जो भी मांगा मुझे वह मिला ख्वाजा साहब कभी किसी को खाली नहीं छोड़ते जो भी सवाली जाता है वह उसकी झोली भर देते हैं।


Khoja गरीब नवाज के बारे में यह ओर देखे

अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास – Ajmer Sharif Dargah History In Hindi 2018/2019



Khwaja| |garib nawaz| |ki karamat||New bayan!!2019


 मगरिब के वक्त Roshni Ka Manzar

गरिब के वक्त हर रोज ख्वाजा साहब के यहां एक अलग ही मंजूर होता है ढेर सारी चिड़िया बोलती हैं वह चिड़ियों की आवाज कानों को और दिल को बेहद सुकून देती हैं और एक खादिम रोज मगरिब के वक्त अपने अलग अंदाज में कुछ पढ़तेे हैं ख्वाजा का  ख्वाजगना  और बड़ी ही प्यारी सी अंदर आवाज में दुआ करते हैं सभी लोग बैठकर उधवा कोो सुनते है और आमीन आमीन कहते हैं और मगरिब के वक्त मोमबत्तियांां जलाई जाती हैं फिर दुआ कंपलीट होने के बाद लोग उन मोमबत्तियां को बुझा कर अपने पास रख लेते हैं और अपनेे उस वक्त को रोशनी का वक्त कहा जाता है उस वक्त मजार पर लोगों की हाजिरी भी होती है  ।


मजार  फूलों से भरा होता है  और वह मंजर आंखों को ठंडक पहुंचाता है यह पोस्टट लिखते  वक्त वह मंजर मेरी आंखों के सामने है और इस वक्त भी मेरेेेे दिल  को सुकून पहुंचा रहाा हैऔर दिल कर रहा है कि अजमेर शरीफ पहुंच जाऊं  वह प्यारा मगरिब के वक्त रोशनी का मंजर देख लो ऐसा लगताा है रहमत बरस रही हो  और दुआएं पूरी होने को तैयार बैठे हो अल्लाह फरमाता ओके मांगो जोो चाहे वह मांग को ख्वाजाा मोइनुद्दीन अजमेरी के सदके में मैं तुम्हें वह अता कर दूंगा ।



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" इस्लामिक नीलोफर आजहरी"


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