साबिर पाक का वाकया साबिर पाक का वाकया कलियर शरीफ का साबिर पाक का वाकया 12 साल खाना नहीं खाया 2018
साबिर पाक का वाकया को कोन नही जानता सारा ज़माना आपके नआम से वाकिफ है। साबिर पाक का वाकया कलियर शरीफ का बहोत ही मसहूर मज़ार शरीफ है।साबिर पाक का वाकया 12 साल खाना नहीं खाया ओर दुसरो को खिलाते रहे खुद भूखे रहे साबिर साहब का वाक़या मपी3 में भी मौजूद है ।साबिर साहब का वाकिया वीडियो में भी मिलता है लोग बहोत खुशई से वीडीओ देखते है और अपना ईमान ताज़ा करते है।साबिर पाक का वाकिया कवाली तस्लीम आरिफ की पड़ी हुई बहोत सी फेमस क्वालियाँ है जो लोगो को बहोत पसंद आती है।
साबिर पाक का वाकया कव्वाली तस्लीम आरिफ
तस्लीम आरिफ हिंदुस्तान के बहुत ही मशहूर कव्वाल है यह साबिर ए पाक के जीवन के ऊपर बहुत सारी कव्वालियां पढ़ते हैं इनकी कव्वाली में साबिर पाक की करामात ए आपका बचपन आप की जवानी सभी को शामिल होता है।
साबिर पाक का जीवन परिचय साबिर पाक के जीवन की कुछ झलकियां
हजरत सय्यद मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक रहमतुल्ला अलैह इस नाम को कौन नही जानता। और जाने भी क्यो नही यह नाम अल्लाह के उस पाक वली का है जिसने गुमराहो और मुसीबत के मारो की रहनुमाई की और इस्लाम के सुखते दरख्त को फिर से हरा भरा किया है। आज भी इस्लाम के मानने वाले मुसलमानो मे इस नाम को बडे अदब के साथ लिया जाता है। जिनकी दरगाह आज भी भारत के उतराखंड राज्य के रूडकी शहर से 6 किलोमीटर दूर कलियर शरीफ नामक स्थान पर स्थित है। जिसके बारे में हम अपनी पिछली पोस्ट कलियर शरीफ दरगाह में बता चुके है। अपने इस लेख में हम साबिर पिया का बचपन, साबीर पाक की जीवनी, साबिर पाक का वाक्या आदि के बारे में विस्तार से जानेगें।
साबिरसाबिर पाक के वालिद (पिता) सय्यद खानदान से थे। जिनका नाम सय्यद अब्दुर्रहीम था। जो हजरत सय्यद अब्दुल का़दिर जिलानी के पोते थे। जिनका खानदानी सिलसिला हजरत इमाम हुसैन से मिलता है। साबिर पाक की वालिदा (माता) का नाम हजरत हाजरा उर्फ जमीला खातून था। जो हजरत बाबा फरीदउद्दीन गंज शक्र की बहन थी। जिनका खानदानी सिलसिला हजरत उमर फारूख से मिलता है।
पाक के माता-पिता
साबिर पाक की पैदाईस
साबीर पाक का नाम
साबीर पाक की वालिदा फरमाती है कि पैदाइश से पहले एक दिन हजरत मोहम्मद मुस्तफा मेरे ख्वाब में तशरीफ लाये और कहा कि होने वाले बच्चे का ना मेरी निस्बत से अहमद रखना। साबीर पाक की वालिदा कहती है की फिर कुछ दिनो के बाद मेरे ख्वाब में एक रोज हजरत अली तशरीफ लाए और उन्होने फरमाया की अपने बच्चे का नाम अली रखना। जब हजरत साबीर की पैदाईस हो गई तो एक रोज एक बडे ही आलिम बुजुर्ग इनके घर तसरीफ लाए और साबीर को गोद में लेकर प्यार किया और साबीर के वालिद से फरमाया इस बच्चे का नाम अलाउद्दीन रखना। इसी वजह से आपके वालिद ने तीनो की बाते मानते हुए बच्चे का नाम अलाउद्दीन अली अहमद रखा।
साबिर पाक का बचपन
साबीर पाक सब्र और संतोष को अपनी पैदाईस के साथ ही लाए थे। पैदाईस के समय से ही साबीर पाक एक दिन मां का दूध पिते थे तथा दूसरे दिन रोजा रखते थे। एक साल की उम्र के बाद साबीर एक दिन दूध पीते तथा दो दिन रोजा रखते थे। जब साबीर पाक की उम्र तीन साल हो गई तो साबीर पाक ने दुध पिना छोड दिया था। उसके बाद साबीर जो या चने की रोटी बस नाम के लिए ही खाते थे। ज्यादातर रोजा ही रखते थे। 6 साल की उम्र में साबीर के वालिद की मृत्यु हो गई। छोटी सी उम्र में साबीर यतीम हो गए। वालिद की मृत्यु के बाद साबीर खामोश रहने लगे। बस नमाज और रोजे में लगे रहते। शोहर की जाने के बाद साबीर की वालिदा की जिन्दगी गुरबत में बितने लगी। मगर वह किसी से अपनी गुरबत के बारे में नही कहती थी। तीन तीन चार चार दिन में जो भी थोडा बहुत खाने को मिलता दोनो मां बेटे खा लेते। इस तरह साबीर और उनकी वालिदा की जिन्दगी ज्यादातर रोजे रखने में गुजरने लगी। इस गुरबत भरी जिंदगी में गुजर बसर करते हुए साबीर साब की मां को एक दिन ख्याल आया की ऐसी तंग हालत जिंदगी साबीर की परवरीश और तालिम होना बहुत मुश्किल है। इसलिए उन्होने साबीर को अपने भाई हजरत बाबा फरीदउद्दीन गंज शक्र के पास पाक पट्टन भेजने का इरादा बना लिया। (पाक पट्टन पाकिस्तान का एक शहर है। जहा आज भी बाबा फरीद की मजार है) आखिर साबीर की वालिदा साबीर को लेकर पाक पट्टन पहुच गई। उस समय साबीर की उम्र ग्यारह वर्ष थी। साबीर की वालिदा ने भाई फरीदुउद्दीन से गुजारिश की कि इस यतीम बच्चे कोअपनी गुलामी में ले लें। बाबा फरीद ने कहा बहन मे तो खुद इसे यहा लाने की सोच रहा था। तुम खुद इसे यहा ले आयी तुमने बहुत अच्छा किया। चलते वक्त साबीर की वालिदा ने कहा भाई मेरा साबीर बहुत शर्मीला और खाने पीने के मामले में बहुत लापरवाह है, जरा ख्याल रखें। बाबा फरीद ने तुरंत साबीर को बुलाया और उनकी वालिदा के सामने ही साबीर को हुक्म दिया- साबीर जाओ आज से तुम लंगर के मालिक हो जाओ लंगर का इंतजाम करो और उसे तक्सीम करो। यह सुनकर साबिर पाक की वालिदा बहुत खुश है और खुशी खुशी अपने घर लौट आयी। इसके बाद साबिर पाक रोजाना अपने हुजरे से बाहर तशरीफ लाते और लंगर तक्सीम करते और फिर हुजरे में चले जाते। साबीर साब हुजरे का दरवाजा बंद करके तंन्हा रहते थे। और हमेशा यादे अल्लाह की याद में खोये रहते थे। साबीर लंगर तो तक्सीम करते थे मगर खुद नही खाते थे। किसी ने भी कभी भी उन्हें लंगर के वक्त या बाद में कुछ खाते पीते नही देखा। साबीर साहब ने तभी से इंसानी गिजा बिल्कुल छोड दी थी। उनकी जिंदगी अब रूहानी गिजा पर चल रही थी। इसी तरह साबीर ने खिदमत करते हुए बारह साल गुजर गए।।
अल्लाउद्दीन अली अहमद का नाम साबिर कैसे पडा
बारह साल बाद साबिर की वालिदा का मन साबिर से मिलने के लिए हुआ। उन्होने सोचा अब मेरा बेटा खा पीकर जवान हो गया होगा उससे मिललकर आती हूँ। खुशी खुशी वह साबीर से मिलने के लिए पाक पट्टन पहुची। साबिर पाक को देखते ही वह हेरत में पढ गई। खाना ना खाने की वजह से साबिर का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। उन्होने साबिर से इस कमजोरी का कारण पूछा तो साबिर ने कहा मैने बारह साल से खाना नही खाया है। यह सुनकर साबीर की वालिदा को बडा रंज हुआ और भाई की तरफ से गुस्सा भी आया। वह तुरंत अपने भाई बाबा फरीद गंज शक्र पास गई और कहा आपने मेरे को खाना नही दिया उससे ऐसी क्या गलती हो गई थी। बाबा फरीद ने कहा बहन मैने तो तेरे बेटे को पूरे लंगर का मालिक बना दिया था। और तुम खाना ना देने की बात करती है। बाबा फरीद।ने तुरंत साबिर पाक को बुलाया और पूछा यहा सुबह शाम लंगर चलता है. तमाम भूखे लोग यहा खाना खाते है। तुमने इतने समय खाना क्यो नही खाया। जबकि मैने तुम्हे पुरे लंगर का मालिक बना रखा था। इस पर साबिर साहब ने जवाब दिया आपने लंगर तक्सीम करने के लिए कहा था। न कि खाने के लिए। भान्जे की यह बात सुनकर बाबा फरीद हैरत में पड गए और भान्जे को अपने पास बुलाकर उसकी पेशानी को चुमा और कहा यह बच्चा साबिर कहलाने के लिए पैदा हुआ है। आज से यह मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर है। तभी से आज तक इन्हे साबिर पाक के नाम से जाना जाने लगा।
साबिर साहब का निकाह
कुछ समय बाद साबिर पाक की वालिदा को साबिर के निकाह की चिन्ता हुई। साबिर की वालिदा ने अपने भाई बाबा फरीद से गुजारिश की वह अपनी बेटी खतीजा का निकाह साबिर से कर दे। बाबा फरीद ने कहा साबिर इस लायक नही है। क्योकि उन पर जज्ब और इस्तगझराक हर वक्त जारी रहता है। दुनियादारी से उन्हे कोई मतलब नही है। भाई के यह बात सुनकर बहन को बहुत दुख हुआ और कहने लगी आप मुझे यतीम गरीब और लाचार समझकर इन्कार कर रहे है। बहन की इनसबातो का बाई के दिल पर असर हुआ और उन्होने अपनी बेटी खतीजा का निकाह साबिर पाक से कर दिया। जमाने के दस्तूर के मुताबिक जब साबिर की बीबी को साबिर साहब के हुजरे में भेजा गया। उस समय साबिर कलियरी नमाज में मशगूल थे। जब सलाम फेरकर आपकी नजर दुल्हन पर पडी तो जमीन से एक शोला निकला और दुल्हन जलकर राख हो गई। रात के इस वाक्या से साबिर की वालिदा को बहुत दुख हुआ वह इस सब का जिम्मेदार अपने आप को मानने लगी। इसी सदमे में उनका इन्तेकाल हो गया
साबीर पाक की कलियर शरीफ में आमद
हजरत बाबा फरीदउद्दीन गंज शक्र आपके मामू भी थे और आपके पीर मुर्शिद भी थे। इन्ही से आपने खिलाफत पायी थी। बाबा फरीद ने आपको कलियर शरीफ की खिलाफत देकर अलीमुल्ला इब्दाल को आपके साथ कलियर की तरफ रवाना किया। कहते है कि साबिर पाक की आमद कलियर शरीफ में 656 हिजरी को हुई थी। बहुत जल्दी ही आपके जुहद व तकवा की शोहरत चारो और फैल गई।
कलियर शरीफ
उतराखंड के रूडकी से 4किमी तथा हरिद्वार से 20 किमी की दूरी पर स्थित पीरान कलियर शरीफ हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल कायम करता है । यहाँ पर हजरत अलाऊद्दीन साबीर साहब की पाक व रूहानी दरगाह है । इस दरगाह का इतिहास काफी पुराना है यहाँ पर सभी धर्मों के जायरीन जियारत करने आते है । तथा अपनी मन्नतें मागंते है तथा चादर और सीनी (प्रसाद) चढाने के साथ साथ यहाँ भूखों के लिए लंगर भी लगाते है । यहाँ पर साबिर साहब की दरगाह से अलग और भी कई दरगाह है जैसे :- हजरत इमाम साहब की दरगाह, हजरत किलकिली साहब , नमक वाला पीर, अब्दाल साहब और नौ गजा पीर कलियर जियारत के लिए यह दरगाह अपना महत्व रखती है। कलियर के बीच से एक साथ निकलने वाली दो नहरें इसकी शोभा और बढ़ा देती है।
साबिर पाक की वफात (मृत्यु)
हजरत ख्वाजा मख्दूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की इस दूनिया से रूखस्ती 13 रबिउल अव्वल दिन पंचशंबा 690 हिजरी माना जाता है।
दरगाह साबीर पाक
हजरत अलाऊद्दीन साबीर पाक की दरगाह यहाँ की मुख्य दरगाह है । इस दरगाह के दो मुख्य द्वार है तथा बीच में हजरत साबीर साहब का मजार है मजार के अन्दर साबीर साहब की कब्र है । कब्र पर जायरीन चादर व फूल चढाते है । मजार की बहारी दीवार सिमेंट की जालीदार बनी है । ऐसा माना जाता है की यह एक ऐसी दरगाह है जहाँ मुराद पूरी होने के साथ साथ जिन्नात भूत प्रेतों को फासी होती है और रूहानी बलाओं से छुटकारा मिल जाता है । यहाँ दरगाह में गूलर के वृक्ष पर मन्नतों का पर्चा लिखकर बांधा जाता है । दरगाह के अन्दर ही साबरी मस्जिद भी है । तथा मस्जिद के पिछे की तरफ मुसाफ़िर खाना बना हुआ है यहाँ जायरीनों के ठहरने की व्यवस्था है । यहाँ दरगाह पर हर बृहस्पतिवार को कव्वाली का आयोजन भी होता है । जिसमें जायरीन बढचढकर हिस्सा लेते है । यहाँ हर साल 12 रबी-उल-अव्वल को हर वर्ष उर्स(मैला) लगता है
दरगाह हजरत इमाम साहब |
यह दरगाह दोनों नहरों के उस पार दूसरे तट पर स्थित है । यह मजार हजरत इमाम साहब का है जोकि हजरत साबीर साहब के मामू लगते थे। इस दरगाह पर जाने वाले मार्ग पर अब एक विशाल द्वार बनाया गया है । द्वार से कुछ दूर आगे चलने पर इमाम साहब की दरगाह है । यह दरगाह ऊचे चबूतरे पर बनी है । दरगाह के मुख्य गेट पर नगाड़ा बजता रहता है । यहाँ दरगाह के अन्दर खड़े वृक्ष पर शिकायतों का धागा बांधा जाता है । ऐसा भी माना जाता है कि कलियर शरीफ की जियारत पर सबसे पहला सलाम यही होता है ।
हजरत किलकिली साहब
यह मजार भी नहर के इसी तट पर इमाम साहब की दरगाह से लगभग आधा किमी की दूरी पर है । कलियर शरीफ जियारत के लिए यहाँ दूसरा सलाम होता है यहाँ भी जायरीनों की काफी भीड़ रहती है।
नमक वाला पीर
यह दरगाह दोनों नहरों के बीच में स्थित है । (*पीरान कलियर शरीफ*) जियारत के लिए यहाँ तीसरा सलाम होता है । यहाँ प्रसाद के रूप में नमक झाड़ू व कोडिया चढाई जाती है । ऐसा माना जाता है की यहाँ प्रसाद चढाने से एलर्जी तथा चमड़ी रोगों को आराम होता है।
हजरत अब्दाल साहब
यह दरगाह मुसाफ़िर खाने के पिछे की तरफ साबरी बाग में स्थित है । यहाँ भी जायरीनों का मेला लगा रहता है।
नौ गजा पीर
यह दरगाह कलियर से लगभग 4 किमी की दूरी पर रूडकी हरिद्वार नैशनल हाईवे से कलियर को जोडने वाले लिंक मार्ग पर है । यहाँ का मुख्य आकर्षण यहाँ की नौ गज की कब्र है । इसी से इसका नाम नौ गजा पीर पड़ गया ।
खरीदारी
हजरत साबीर साहब की दरगाह के दोनों मुख्य द्वारो के सामने बड़ी मार्किट है । यहाँ सभी दुकानों के नाम के साथ साबरी जरूर लगा होता है । यहाँ से आप लकड़ी की कलाकृति के आइटम चूडियां खिलौने आर्टिफिशियल ज्वैलरी कव्वाली की आडियो विडियो कैसेट आदि के अलावा यहाँ का प्रसिद्ध सौन हलवा व मिठे दानो का प्रसाद की खरीदारी कर सकते है
ठहरने हेतु यहाँ मुसाफ़िर खाने के अलावा बहुत से होटल व गेस्टहाउस भी है।
पीरान कलियर शरीफ कैसे पहुचे
कलियर शरीफ कैसे पहुचे
रूडकी और हरिद्वार यहाँ के सबसे नजदीकी रेलवेस्टेशन तथा बस अड्डे है । जौलीग्रांट यहाँ का सबसे करीबी हवाई अड्डा है।
इन सभी दरगाह पर इंसानों की मन की मुरादे पूरी होती है वह सच्चे दिल से जो भी मांगे उन्हें मिल जाता है अगर किसी के ऊपर भूत-प्रेत है तो वह भी उतर जाता है कहते हैं अल्लाह वालों का सीधा कनेक्शन ला से होता है इसलिए जो जवान हमारी नहीं इन बुजुर्ग गाने दिन की होती है यह अल्लाह से सलाम करते हैं यानी बात करते हैं हमारे जवान इस लायक नहीं कि हम अल्लाह से बात कर सके उस तक हमारी बात पहुंच सके इसलिए हम इन बुजुर्गों का सहारा लेते हैं और अल्लाह से अपनी बात मनवाने हैं बुजुर्ग गाने दिन की बात अल्लाह कभी नहीं डालता चाहे वह दुनिया के कोई भी बली पैगंबर हो यह सभी अल्लाह के महबूब होते हैं अल्लाह इनका हो जाता है यह अल्लाह के हो जाते हैं और यह जैसे चाय अल्लाह से जो चाहे मांग सकते हैं इसलिए हमें इन थे मांगना चाहिए ताकि यह हमें अल्लाह से दिलवा दे बुजुर्ग गाने दिन की हमेशा इज्जत करनी चाहिए और सच्चाई अकीदा रखना चाहिए कि हम इंतजा भी मांगेंगे वह इंशाल्लाह में जरूर मिलेगा।
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(इस्लामिक नीलोफर अजहरी)
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